मातृशक्ति

मातृशक्ति विश्व हिन्दू परिषद की संगठनात्मक इकाई है, विश्व हिन्दू परिषद जैसे सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा कार्य के संदर्भ में महिलाओं के कार्य पर विशेष ध्यान दिया गया, इसलिए 20 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी प्रन्यासी मण्डल में हो, इसका निर्णय लिया गया। परिषद की विभिन्न इकाइयों में एक महिला प्रतिनिधि रखा जावे, यह भी निर्णय लिया गया। अतः 1973 में उदयपुर के कार्यकर्ता प्रशिक्षण के बाद प्रो0 मन्दाकिनी दाणी को जो पूर्णकालिक थीं, उन्हें अखिल भारतीय मंत्री (महिला विभाग) के रूप में नियुक्त किया गया। 1975-77 तक उनके अथक परिश्रम व प्रवास से प्रान्त-प्रान्त में महिला विभाग खड़ा हो गया। 1979 के द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन, प्रयाग में 40 हजार मातृशक्ति उपस्थित थी। इस सम्मेलन की अध्यक्षता स्वनामधन्य श्रीमती महादेवी वर्मा जी ने की थी।

धर्मो रक्षति रक्षितः’ को ध्यान में रखकर महिला विभाग द्वारा सत्संग करने की योजना बनाई गई। देशभर में हजारों सत्संग प्रारम्भ हुए तथा प्रान्त, विभाग, जिला स्तर तक संगठनात्मक इकाई खड़ी हो गई। अश्लीलता विरोध, दहेज विरोध, गोहत्या विरोध जैसे कार्यों में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। मीनाक्षीपुरम की घटना के विरोध में महिलाओं के सराहनीय योगदान रहा। संस्कृति रक्षा योजना, प्रथम एकात्मता यात्रा में महिलाओं ने प्रान्त-प्रान्त में प्रवास करके जन-जागरण में अपनी भूमिका निभाई।

बाल संस्कार केन्द्र, बालवाड़ी और सिलाई केन्द्रों के माध्यम से देश की सेवा, बस्तियों में सेवा कार्य प्रारम्भ किए गए। महाराष्ट्र, गुजरात में अनेक सेवा कार्य प्रारम्भ किए गए।

दूसरा कालखण्ड 1984 से 1994 तक का रहा। इसमें महिला विभाग के संगठनात्मक ढ़ाँचे को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय संयोजिकाओं की नियुक्ति की गई। माननीय जी. व्ही. हुपरीकर जी को, जो केन्द्रीय मंत्री थे, महिला विभाग के विस्तार की जानकारी दी गई। इस दृष्टि से विभिन्न अंचलों में मातृशक्ति के अभ्यास वर्ग, प्रशिक्षण वर्ग के आयोजन किए गए। इसमें से कई प्रवासी महिलाएं निकल कर आईं।

1984 में मणिपुर में दो मातृ सम्मेलनों का आयोजन किया गया। 1988 में पूर्वांचल और पश्चिमांचल के नागपुर, दिल्ली में महिला अभ्यास वर्गों का आयोजन किया गया। इसमें माननीया मीनाताई भट्ट, जो पूर्णकालिक थीं, उपस्थित रहीं। 1985 में महिलाओं द्वारा ब्रजयात्रा का आयोजन किया गया। 1994 की दिल्ली में ‘भूतो न भविष्यति’ ऐसा एक लाख महिलाओं का सम्मेलन किया गया। इसकी व्यवस्था की जिम्मेदारी माननीया मीनाताई भट्ट, माननीया कमलेश भारती जी, माननीया ऊषा रानी सिंहल, श्रीमती मनोरमा ताई, सुश्री निर्मला जी आदि पर थी। सम्मेलन में साध्वी ऋतम्भरा जी (दीदी माँ) को दुर्गावाहिनी का अखिल भारतीय संयोजिका बनाया गया। 1992 में उज्जैन के सिंहस्थ में मध्यप्रदेश से 10 हजार बहिनों का सम्मेलन किया गया, जिसमें विजयाराजे सिन्धिया उपस्थित रहीं।

  • श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में महिला संगठन की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही। इसी योगदान को देखकर महिला विभाग की युवाशक्ति (दुर्गावाहिनी) के नाम से प्रारम्भ की गई।
  • विदर्भ में 1992 में नागपुर के मातृशक्ति कल्याण केन्द्रों की स्थापना की गई। इसमें निराधार परित्यक्ता और शोषित महिलाओं के लिए केन्द्र प्रारम्भ किया गया।
  • 1996 का प्रयाग के माघ मेले में मातृ सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में माननीय ओंकार जी भावे, माननीय अशोक जी सिंहल एवं माननीय आचार्य गिरिराज किशोर जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। इसी सम्मेलन में साध्वी शक्ति परिषद का गठन किया गया।
  • 1997 के हरिद्वार में मातृशक्ति सम्मेलन किया गया। इसमें 8 हजार महिलाएं उपस्थित थीं। परमपूज्य म0म0 सन्तोषी माता जी का आशीर्वचन हमें प्राप्त हुआ।
  • प्रत्येक दो वर्ष पश्चात अखिल भारतीय महिला प्रतिनिधि सम्मेलन योजना बनी। इस 1998 में अयोध्या में, 2000 में सहारनपुर में, 2002 में श्रीनाथ जी में, 2004 में वृन्दावन में, 2006 व 2008 में अकोला में आयोजित किए गए। 2010 में बंगलुरु में तथा 2014 में हरिद्वार में आयोजित हुए हैं।
  • बालवाड़ी के माध्यम से सत्संग, उत्सव बस्ती-बस्ती में प्रारम्भ हो गए। कई सिलाई केन्द्र उड़ीसा में प्रारम्भ हो गए। परिवार संस्कार का कार्य महिलाओं द्वारा समाज में जन जागरण के रूप में प्रारम्भ हो गया।

इस तीसरे चरण में मातृशक्ति का संगठनात्मक कार्य जिला प्रखण्ड स्तर तक पहुँचा। 2005 में काशी प्रान्त के अभ्यास वर्ग में प्रान्त से 121 महिलाओं का 8 जिलों से सहभाग रहा। सिलवानी, मध्यप्रदेश में 700 महिलाओं का अभ्यास वर्ग 7 अगस्त, 2005 में हुआ। दक्षिण बिहार का भागलपुर में 70 महिलाओं का अभ्यास वर्ग हुआ। 2004 में वृन्दावन में अखिल भारतीय महिला मातृशक्ति जागरण वर्ग लगाया गया। इसमें 25 प्रान्तों से 125 प्रतिनिधि उपस्थित हुए। इसमें तत्कालीन महिला आयोग की अध्यक्षा श्रीमती पूर्णिमा आडवाणी विशेष रूप से उपस्थित थीं। 2006 में अकोला में तीन दिवसीय अखिल भारतीय मातृ सम्मेलन में 33 प्रान्तों से 130 महिला प्रतिनिधि उपस्थित रहीं।

पूरे देश में श्री माँ की 125वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में 251 कार्यक्रम आयोजित किए गए। पर्यावरण रक्षा के लिए प्रत्येक जिले में 100 पौधारोपण का कार्यक्रम किया गया। माननीय ओंकार भावे जी की 50वीं वर्षगांठ पर पूरे देश में समर्पण कार्यक्रम एवं महिला सम्मेलन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। नागपुर में महिला पुरोहित प्रशिक्षण का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, जिसमें 525 महिला पुरोहितों ने भाग लिया।

इसी अवधि में पूर्णकालिक कार्यकर्ता योजना बनी, इसमें बहुत बड़ी संख्या में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यभारत से पूर्णकालिक बहिनें निकलीं, जिनके राष्ट्रव्यापी प्रवास से जिला, विभाग, प्रान्त की प्रवास योजना में कार्य में लगी तथा संगठन को सृदृढ़ किया। उस समय महिला विभाग की बागडोर आचार्य गिरिराज किशोर जी के पास थी। अब यह कार्य माननीय ओंकार भावे जी के पास आया। उन्होंने बुद्धिजीवी महिलाओं के लिए हिन्दू महिलाओं की आवाज उठाने वाला मंच ‘तेजस्विनी विचार मंच’ का गठन किया।

सेवा कार्य के लिए महत्वपूर्ण योगदान सुश्री अलकाताई परुलेकर का रहा। उनके उल्लेखनीय सेवा कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ। देवलापार के गो संस्थान तथा गोवा के महिलाश्रम प्रकल्प पर बड़ी मात्रा में महिला कार्यकर्ताओं का योगदान बढ़ रहा था। इसी दृष्टिकोण से सेवा कार्य बढ़ाने का विचार हुआ। सेवा कार्य विश्व हिन्दू परिषद के माध्यम से चल रहे थे। 1994 में दिल्ली के मातृ सम्मेलन के बाद केन्द्र में मातृशक्ति सेवा न्यास का गठन किया गया। बालकों के संस्कार वर्ग, मातृशक्ति सेवा न्यास हेतु धन संग्रह, धार्मिक उत्सवों में भाग लेना आदि कार्यों में महिला सहभागिता बढ़ने लगी। तदर्थ ग्वालियर में सेवा कार्य हेतु 2001 जनवरी में श्रीमद् भागवत् कथा का आयोजन किया गया, जो पूर्णतः मातृशक्ति द्वारा प्रारम्भ हुआ। दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी द्वारा श्रीमद् भागवत् कथा का वाचन हुआ। इसमें जो राशि प्राप्त हुई, उससे बालवाडि़याँ चलाई गई। चांपा में साध्वी मैत्रेयी द्वारा तथा गंगानगर, राजस्थान में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किए गए। इसके धन से सेवा कार्य प्रारम्भ किए गए।

  • कुप्रथाओं के विरोध में जन जागरण अभियान कन्या भू्रण हत्या, इण्डिया नहीं भारत आदि कार्यक्रम पूरे देश में आयोजित किए गए।
  • महिलाओं को सुरक्षित, स्वाभिमानी जीवन की प्रेरणा के लिए इन्दौर में सीताशरण नाम से, कानपुर में मातृशक्ति सेवा न्यास, ग्वालियर में स्नेहधारा छात्रावास के नाम से स्थायी सेवा प्रकल्प सुदूर पूर्वांचल की बालिकाओं के लिए चलाए गए। आज सामाजिक पुनर्जागरण केलिए मातृशक्ति सराहनीय कार्य कर रही है।
  • विश्व हिन्दू परिषद के स्वर्ण जयन्ती के शुभ अवसर पर मातृशक्ति द्वारा कई कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे हैं, जिससे जन जागरण संगठन और सेवा कार्य के माध्यम से मातृशक्ति का कार्य उत्तरोत्तर बढ़ेगा।